अन्तर्राष्ट्रिय योग दिवस को यादगार बनाने के लिए प्रधान मंत्री को सुझाव.
1.स्वास्थ या एच.आर.डी. मंत्रालय के अन्दर योग के लिए एक स्वतंत्र प्रभाग बनाया जाना चाहिए.
2.पतंजल-योग सूत्रों को वैज्ञानिक अवधारणा में लाया जाय जिससे लोगों का विश्वास वढ़े. यह कोइ बड़ी बात नहीं है वशर्ते वैज्ञानिकों का इगो आड़े न आय. न्यूरोलॉजिस्ट कर्मयोगी डा अशोक पनगड़िया,जयपुर, जैसे लोगों का सहयोग लिया जाना चाहिए
3.संसार में नैतिकता का पतन मस्तिष्क का गलत उपयोग करने के कारण, बड़ी तेजी से हो रहा है.पतंजल योग सूत्रों में मस्तिष्क का सही और गलत उपयोग होने से, होने वाले लाभ और दुःष्परिणाम दोनों का वर्णन स्पष्ट ढंग से किया गया है. इसे वैज्ञानिक भाषा मे प्रसार एवं प्रचार किया जाना चाहिए
In this highly informative rich times, the entire planet of 7.2 billions people can be inspired to turn to this profound science of yoga of inner well-being by creating awareness of what yoga really is.........
योग-लाभ अधिकतम लोगो के अंतरंग तक पहुंचाने के लिए, इगो-विहिन फैशन ही एक मात्र साधन है ? जिसका नित्य बारम्बार दृष्टि-बोध ही मस्तिष्क में चहलकदमी कर रहे बाहरी विचार-तरंगों को आन्तरिक तरंगें के संगत में लाने के लिए उपयुक्त है. (शोध का विषय है.)
क्या है योग की वास्तविकता ?
मन या चेतना पटल (स्क्रीन) पर स्वंय की प्रकृति के कारण विभिन्न आवृति, आयाम की उठती अनियंत्रित विचार-तरंगें ( पतंजल की वृत्तियां ) लगातार स्क्रीन पर चहलकदमी करने वाली इन बाहरी विचार-तरंगों को उनके अपने अनुपातिक कम्पन-विस्तार या परास में निरोध कर देने से वे अपनों के निज स्वरूप की आन्तरिक-तरंगों ( आत्म परक -सत्व, रज, तम) के साथ घुल-मिल कर सरल आवर्त में कम्पन करने लगती हैं जिसे मन को अपेच्छाकृत अभूतपू्र्व शान्ति की अनुभूति होती है. इसे ही लोग योग कहते हैं. उक्त विवरण का योग-प्रारूप में चित्रित किया जा सकता है. ऐसा ही कुछ पतंजल योग-सूत्र में भी कहा गया है.
1-योगाश्चित्त वृतिनिरोधः 2- तदा द्रुष्टु स्वरूपेअवस्थानम् .
3- वृत्तिसारूप्य मितरत्र .
योग की अनुपस्थिति में मानव शरीर पर पड़ते प्रभावः
असन्तुलित तनाव की दशा में शरीर-अन्दर हारमोनल क्रिया-विधि मे गड़बड़ी पैदा होने के फलस्वरूप शरीर और मस्तिष्क में आवश्यक सामजस्य टूट जाता है जिसके कारण शारिरीक कार्य-विधि, चया-पचय (metabolism) प्रभावित होना सुरू हो जाता है. इस कारण कोशिका के प्रभावित होने के कारण मनुष्य मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होने लगता है. इसके कारण थकावट जल्दी-जल्दी आने लगती है. यह विल्कुल वैसे ही है जैसे असन्तुलित तनाव की दशा में पदार्थ अन्दर स्थित अणु अपनी पिछली अवस्था में नहीं लौट पाते ( तनाव के हट जाने पर भी). वैज्ञानिक हुक के अनुसार तनाव जब पदार्थ के प्रत्यास्थ सीमा को पार कर जाय तो वह टूट जाता है अन्यथा वह अपने अनुपातिक परास में सरल आवर्त गति में कम्पन करते रहते है.यह नियम हम सब मनुष्यों पर भी लागू होते दिखाइ देता है.
योग प्रारूप की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
आज भाग-दौड़ की दूनियां मे मस्तिष्क यदि अपने-आप किन्ही सार्थक उपाय (coincidental remedy) से सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो जाय तो यह मानव-हित में बड़ी सफलता समझी जायेगी.
सार्थक उपायों मे संगीत ही एक मात्र ऐसा साधन दिखता है जिससे संसार में सभी अपना तनाव कम करते पाये जाते हैं. शायद यह मानव के निज़-स्वरूप के सबसे करीब है. इसी आइडिया को यहां आइडिएट किया गया है.
संसार में जो कुछ दिख रहा है वह सब गतिमान ऊर्जा का ही परिवर्तित रूप है. इसी परिवर्तन के फलस्वरूप विभिन्न आकार-प्रकार के जीव-निर्जिव दृष्य (जन्म)-अदृष्य(मरण) होते रहते हैं. यही ऊर्जा के लय-बद्ध सघनन और प्रसारण का प्रतिफल है. यह सब सुनियोजित, क्रमिक, सुसम्बद्ध निरंन्तर रूप में चलते रहना ही संसार की नियति (destiny) है. अतः संसार योजना बद्ध विचार-तरंग का ही मूर्त-रूप है. इसलिए इसका दृष्टि-बोध ज्ञान-प्राप्ति का साधन हो सकता है ?बुद्धा एवं पतंजल दर्शन में दृष्टि-बोध और ज्ञान-बोध का एकीकरण होते देखा गया है.
योग-प्रारूपः
संगीत-सम्पादन में प्रयोग होने वाले योजना-बद्ध, क्रमिक, समानुपातिक अघिस्वरों (overtones) के अधार पर रचे गये स्ट्राइप्स समुंह ऊर्जा का स्थानान्तरण एवं हस्तानान्तरण का अभासी पैटर्न के अनुरूप है. ऐसा ही विचार-तरंगों के साथ सम्भव हो सकता है क्योंकि संसार का सब कुछ ऊर्जा का ही रूपान्तरित रूप है. अतः इनका दृष्टि-बोध (seeing) अध्यारोपण के कारण समीच्छक (observer) की आन्तरिक उर्जा घटकों (सत्व, रज, तम )मे आपसी समन्यव (harmony} अध्यारोपण के कारण स्थापित होना प्रतित होता है. इसी कारण समीच्छक को शान्ति की अनुभूति होती है. उक्त स्ट्राइप्स समुंह के विभिन्न इकाइयों में सरल या समानुपातिक सम्बन्ध है जो मानव-मस्तिष्क के निज-स्वरूप के नजदीक या समरूप प्रतीत होता है तभी तो दोनों के घुलने-मिलने से शान्ति की अनुभूति होती है.
आधुनिक विज्ञान {modern science}में योग.
मानव के चेतन-पटल या स्क्रीन पर विभिन्न प्रकार के विचार-तरंगें चहलकदमी करती रहती हैं. यही इनकी नियति (destiny) है. इसकी तुलना घड़ी में लगे दोलन से जो अपने कम्पन-विस्तार के अन्दर लगातार कम्पन करते रहते हैं. यही ऊर्जा का वास्तविक एवं आन्तरिक गुण है. यह दो विपरित ध्रुवों के मध्य सरल आवर्त गति मे कम्पन करती रहतीं है गणितज्ञ जे. फोरियर के अनुसार कोइ भी सरल आवर्त कम्पन असंख्य सरल आवर्त कम्पन में विभाजित हो सकतें हैं. ठीक इसके विपरित असंख्य सरल आवर्त कम्पन स्वयं के अध्यारोपण द्वारा एक सरल आवर्त कम्पन में समायोजित या तब्दील हो सकते हैं. इस प्रकार की घटना मानव-मस्तिष्क में भी लगातार घटती रहती है. यहां एक के बाद एक लगातार भिन्न-भिन्न विचार-तरंगें उठती रहती हैं. इन विचार-तरंगों के मध्य सच्चा सरल सम्बंध बनने पर रचनात्मकता मे बृद्धि होती है तथा मन आनन्दित होता है. इसके विपरित यदि उक्त सरल सम्बंध न बन पाय तो मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न होता है.
हम सभी जानतें हैं कि संगीत सम्पादन में एक के बाद एक असंख्य सरल आवर्त कम्पन उत्पन्न होते रहते हैं जो आकाश में कहीं न कहीं एक दूसरे पर अध्यारोपित होते रहते हैं जिनसे संगीत का जन्म होता है. इन अध्यारोपण के कारण असंख्य सरल कम्पन एक सरल कम्पन में समाहित हो मानव-इन्द्रियों तक पहुंचतें हैं याद रहे की मानव इन्द्रियां केवल सरल आवर्त कम्पन को ही पकड़ पाती हैं. ध्यान रहे कि ज्ञानेन्द्रियॉ उसी घटना को पकड़ पाती हैं जिन्हें हमारी आन्तरिक शक्तियॉ यथा शीघ्र उसका मुल्यांकन कर सकें.
पतंजल योग के कुछ सूत्र जिनका आधुनिक विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है...?...
त्रयमेकत्र सयंम्
तस्य वाचकः प्रणव .
क्रमान्यत्वं परिणामान्यत्वे हेतु
परिणामात्रय सयंमादतीतानागत ज्ञानम्
विभिन्न-विचार-तरंगों के मध्य सरल सम्बन्ध बनता रहे-केलिए स्वयं को सरल सम्बन्ध बनाने वाले लाइफ-सटाइल से जुड़ना होगा या अपने को उस जैसे सांचे में ढालना होग जो मात्र इगो-विहिन फैशन से ही सम्भव लगता है.
मेरा मानना है कि योग एवं लाइफ-स्टाइल के सम्बन्ध पर शोध के साथ पब्लिक अवरनेस-प्रोग्राम पर भी विशेष ध्यान देना होगा.
Ramlagan Singh
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Modern physicist define the universe by rational analysis of approximate scientific theories and models. where as 'Patanjal's wisdom through meditative mode of consciousness. The duo are complementary as everything in the universe are the manifestations of same universal consciousness. What we need a dynamic interplay between scientific analysis and meditative mode of consciousness for enhancement of human's excellency.
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