About Me

My photo
Jaipur, Rajasthan, India
Ex. coordinator Prints & Designs Phone - +91 7665119216, 9919588816

Saturday 16 May 2015

International Yoga Day

अन्तर्राष्ट्रिय योग दिवस को यादगार बनाने के लिए प्रधान मंत्री को सुझाव. 1.स्वास्थ या एच.आर.डी. मंत्रालय के अन्दर योग के लिए एक स्वतंत्र प्रभाग बनाया जाना चाहिए. 2.पतंजल-योग सूत्रों को वैज्ञानिक अवधारणा में लाया जाय जिससे लोगों का विश्वास वढ़े. यह कोइ बड़ी बात नहीं है वशर्ते वैज्ञानिकों का इगो आड़े न आय. न्यूरोलॉजिस्ट कर्मयोगी डा अशोक पनगड़िया,जयपुर, जैसे लोगों का सहयोग लिया जाना चाहिए 3.संसार में नैतिकता का पतन मस्तिष्क का गलत उपयोग करने के कारण, बड़ी तेजी से हो रहा है.पतंजल योग सूत्रों में मस्तिष्क का सही और गलत उपयोग होने से, होने वाले लाभ और दुःष्परिणाम दोनों का वर्णन स्पष्ट ढंग से किया गया है. इसे वैज्ञानिक भाषा मे प्रसार एवं प्रचार किया जाना चाहिए In this highly informative rich times, the entire planet of 7.2 billions people can be inspired to turn to this profound science of yoga of inner well-being by creating awareness of what yoga really is......... योग-लाभ अधिकतम लोगो के अंतरंग तक पहुंचाने के लिए, इगो-विहिन फैशन ही एक मात्र साधन है ? जिसका नित्य बारम्बार दृष्टि-बोध ही मस्तिष्क में चहलकदमी कर रहे बाहरी विचार-तरंगों को आन्तरिक तरंगें के संगत में लाने के लिए उपयुक्त है. (शोध का विषय है.) क्या है योग की वास्तविकता ? मन या चेतना पटल (स्क्रीन) पर स्वंय की प्रकृति के कारण विभिन्न आवृति, आयाम की उठती अनियंत्रित विचार-तरंगें ( पतंजल की वृत्तियां ) लगातार स्क्रीन पर चहलकदमी करने वाली इन बाहरी विचार-तरंगों को उनके अपने अनुपातिक कम्पन-विस्तार या परास में निरोध कर देने से वे अपनों के निज स्वरूप की आन्तरिक-तरंगों ( आत्म परक -सत्व, रज, तम) के साथ घुल-मिल कर सरल आवर्त में कम्पन करने लगती हैं जिसे मन को अपेच्छाकृत अभूतपू्र्व शान्ति की अनुभूति होती है. इसे ही लोग योग कहते हैं. उक्त विवरण का योग-प्रारूप में चित्रित किया जा सकता है. ऐसा ही कुछ पतंजल योग-सूत्र में भी कहा गया है. 1-योगाश्चित्त वृतिनिरोधः 2- तदा द्रुष्टु स्वरूपेअवस्थानम् . 3- वृत्तिसारूप्य मितरत्र . योग की अनुपस्थिति में मानव शरीर पर पड़ते प्रभावः असन्तुलित तनाव की दशा में शरीर-अन्दर हारमोनल क्रिया-विधि मे गड़बड़ी पैदा होने के फलस्वरूप शरीर और मस्तिष्क में आवश्यक सामजस्य टूट जाता है जिसके कारण शारिरीक कार्य-विधि, चया-पचय (metabolism) प्रभावित होना सुरू हो जाता है. इस कारण कोशिका के प्रभावित होने के कारण मनुष्य मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होने लगता है. इसके कारण थकावट जल्दी-जल्दी आने लगती है. यह विल्कुल वैसे ही है जैसे असन्तुलित तनाव की दशा में पदार्थ अन्दर स्थित अणु अपनी पिछली अवस्था में नहीं लौट पाते ( तनाव के हट जाने पर भी). वैज्ञानिक हुक के अनुसार तनाव जब पदार्थ के प्रत्यास्थ सीमा को पार कर जाय तो वह टूट जाता है अन्यथा वह अपने अनुपातिक परास में सरल आवर्त गति में कम्पन करते रहते है.यह नियम हम सब मनुष्यों पर भी लागू होते दिखाइ देता है. योग प्रारूप की आवश्यकता क्यों पड़ी ? आज भाग-दौड़ की दूनियां मे मस्तिष्क यदि अपने-आप किन्ही सार्थक उपाय (coincidental remedy) से सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो जाय तो यह मानव-हित में बड़ी सफलता समझी जायेगी. सार्थक उपायों मे संगीत ही एक मात्र ऐसा साधन दिखता है जिससे संसार में सभी अपना तनाव कम करते पाये जाते हैं. शायद यह मानव के निज़-स्वरूप के सबसे करीब है. इसी आइडिया को यहां आइडिएट किया गया है. संसार में जो कुछ दिख रहा है वह सब गतिमान ऊर्जा का ही परिवर्तित रूप है. इसी परिवर्तन के फलस्वरूप विभिन्न आकार-प्रकार के जीव-निर्जिव दृष्य (जन्म)-अदृष्य(मरण) होते रहते हैं. यही ऊर्जा के लय-बद्ध सघनन और प्रसारण का प्रतिफल है. यह सब सुनियोजित, क्रमिक, सुसम्बद्ध निरंन्तर रूप में चलते रहना ही संसार की नियति (destiny) है. अतः संसार योजना बद्ध विचार-तरंग का ही मूर्त-रूप है. इसलिए इसका दृष्टि-बोध ज्ञान-प्राप्ति का साधन हो सकता है ?बुद्धा एवं पतंजल दर्शन में दृष्टि-बोध और ज्ञान-बोध का एकीकरण होते देखा गया है. योग-प्रारूपः संगीत-सम्पादन में प्रयोग होने वाले योजना-बद्ध, क्रमिक, समानुपातिक अघिस्वरों (overtones) के अधार पर रचे गये स्ट्राइप्स समुंह ऊर्जा का स्थानान्तरण एवं हस्तानान्तरण का अभासी पैटर्न के अनुरूप है. ऐसा ही विचार-तरंगों के साथ सम्भव हो सकता है क्योंकि संसार का सब कुछ ऊर्जा का ही रूपान्तरित रूप है. अतः इनका दृष्टि-बोध (seeing) अध्यारोपण के कारण समीच्छक (observer) की आन्तरिक उर्जा घटकों (सत्व, रज, तम )मे आपसी समन्यव (harmony} अध्यारोपण के कारण स्थापित होना प्रतित होता है. इसी कारण समीच्छक को शान्ति की अनुभूति होती है. उक्त स्ट्राइप्स समुंह के विभिन्न इकाइयों में सरल या समानुपातिक सम्बन्ध है जो मानव-मस्तिष्क के निज-स्वरूप के नजदीक या समरूप प्रतीत होता है तभी तो दोनों के घुलने-मिलने से शान्ति की अनुभूति होती है. आधुनिक विज्ञान {modern science}में योग. मानव के चेतन-पटल या स्क्रीन पर विभिन्न प्रकार के विचार-तरंगें चहलकदमी करती रहती हैं. यही इनकी नियति (destiny) है. इसकी तुलना घड़ी में लगे दोलन से जो अपने कम्पन-विस्तार के अन्दर लगातार कम्पन करते रहते हैं. यही ऊर्जा का वास्तविक एवं आन्तरिक गुण है. यह दो विपरित ध्रुवों के मध्य सरल आवर्त गति मे कम्पन करती रहतीं है गणितज्ञ जे. फोरियर के अनुसार कोइ भी सरल आवर्त कम्पन असंख्य सरल आवर्त कम्पन में विभाजित हो सकतें हैं. ठीक इसके विपरित असंख्य सरल आवर्त कम्पन स्वयं के अध्यारोपण द्वारा एक सरल आवर्त कम्पन में समायोजित या तब्दील हो सकते हैं. इस प्रकार की घटना मानव-मस्तिष्क में भी लगातार घटती रहती है. यहां एक के बाद एक लगातार भिन्न-भिन्न विचार-तरंगें उठती रहती हैं. इन विचार-तरंगों के मध्य सच्चा सरल सम्बंध बनने पर रचनात्मकता मे बृद्धि होती है तथा मन आनन्दित होता है. इसके विपरित यदि उक्त सरल सम्बंध न बन पाय तो मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न होता है. हम सभी जानतें हैं कि संगीत सम्पादन में एक के बाद एक असंख्य सरल आवर्त कम्पन उत्पन्न होते रहते हैं जो आकाश में कहीं न कहीं एक दूसरे पर अध्यारोपित होते रहते हैं जिनसे संगीत का जन्म होता है. इन अध्यारोपण के कारण असंख्य सरल कम्पन एक सरल कम्पन में समाहित हो मानव-इन्द्रियों तक पहुंचतें हैं याद रहे की मानव इन्द्रियां केवल सरल आवर्त कम्पन को ही पकड़ पाती हैं. ध्यान रहे कि ज्ञानेन्द्रियॉ उसी घटना को पकड़ पाती हैं जिन्हें हमारी आन्तरिक शक्तियॉ यथा शीघ्र उसका मुल्यांकन कर सकें. पतंजल योग के कुछ सूत्र जिनका आधुनिक विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है...?... त्रयमेकत्र सयंम् तस्य वाचकः प्रणव . क्रमान्यत्वं परिणामान्यत्वे हेतु परिणामात्रय सयंमादतीतानागत ज्ञानम् विभिन्न-विचार-तरंगों के मध्य सरल सम्बन्ध बनता रहे-केलिए स्वयं को सरल सम्बन्ध बनाने वाले लाइफ-सटाइल से जुड़ना होगा या अपने को उस जैसे सांचे में ढालना होग जो मात्र इगो-विहिन फैशन से ही सम्भव लगता है. मेरा मानना है कि योग एवं लाइफ-स्टाइल के सम्बन्ध पर शोध के साथ पब्लिक अवरनेस-प्रोग्राम पर भी विशेष ध्यान देना होगा. Ramlagan Singh For knowing more log on missionquantum.blogspot.com/in Mob. 07665119216. 09169346216. 08574038616 email- mission.quantum@gmail.com

Foster scientific temperament in society

OBJECTIVE IS TO FOSTER SCIENTIFIC TEMPERAMENT IN SOCIETY. Enginneered fashion pertaining to lifestyle is on cards as IMAGINATION, is eligible to be transformed into reality with help of J.Fourier & Hooke's analysis in mathematics. Imagination & reality are inseparable. Theories & Models of Modern Physics lead to a view of intangible (अदृष्य) world found to be internally consistent and perfect harmony with human's consciousness. Functions in real and imaginary spaces are interconvertible. Mathematician J. Fourier (1768-1830) who dealt with two spaces showed that a simple periodic motion of a particle can be imagined as combination of several simple periodic motion. Practically several nos. of simple periodic motion spring up in space while playing or composing any musical tune. These all periodic motions get superimposed on one another in space and give rise a resultant simple periodic motion. Note that simple periodic motions are the combinations of sine & cosine functions to which our senses are highly sensitive to capture, because, intuitive mind takes decision based on what it can evaluate most quickly. ANALOGY MAKES US ENABLE TO SOLVE THE PROBLEMS OF WAVERING MIND BY USING THE TECHNIQUES ALREADY DEVELOPED IN PHYSICS FOR UNIFICATION THROUGH SUPERPOSITION POSSIBILITIES OF SEVERAL KINDS OF WAVES TRAVERSING THE SAME SPACE INDEPENDENTLY OF ONE ANOTHER ( IT IS A EXPERIMENTAL FACTS). All sorts of concepts like love, hate, ego, jealosy, greed and anger are equivalent to imagination, are intangible /invisible varying energy (in patterns), causes the mind to excite (asper variation in energy). Excitation can be restri -cted within proportional region through frequent observation (as per PATANJAL's WISDOM) of proportionate varying energy patterns represented by the overtones drawn under guidance of certain ordered relationships on the backdrop of classical music ( a unifying force). It conditioned the observers' emotions. We all experience it throughout the life. It restricts the excited mind under proportional region.Because beyond this region, the potential energy function of a oscillator does not hold good. Everything of this universe are interrelated with each other, thus the law of nature be equally applicable to everything else (advocated by High Energy physicists of USA, Dr. Frifjof Capra in his book named as 'The Tao of Physics'. PATTERNS OF QUARKS & MUSICAL SCALE ARE SAME: Quark Pattern (is a structure of universal process) is manifestations of ordered relationships between varying patterns of energy. Transmission of informations through out the space is guided by certain ordered relationships alike to music. It is analogous to musical scale where transformation of energy between the varying pattern becomes easy enabling composer to compose the fascinating music.For configuration log on -missionquantum.blogspot.com along with Rajasthan Patrika notes & comments made by DST Director Dr. Amita Gill. REFERANCES: Mind & Matters are interdependent, correlated, mutually enfolding projection of higher reality (D.Bhom,Theoretical Physicists). In wake of cognition, the conscious mind interplay between the utmost concentration to relaxation mode about equilibrium position (goal) within nature's permissible region (capacity). For details, please log on missionquantum.blogspot.com Mob +917665119216 +919169346216. From: RAM LAGAN SINGH, 52, Kalyan Colony, Khatipura Circle. Jaipur-302012. (Rajasthan)

Friday 15 May 2015

क्वान्टम लाइफ़-स्टाइल फॉर योगा एण्ड स्ट्रेस मैनेज़मेन्ट

देश के जाने-माने कर्मयोगी न्यूरोलॉजिस्ट, डा.अशोक पनगड़िया के अनुसार संसार के सभी वैज्ञानिक सिर्फ एक बात पर सहमत है कि मस्तिकीय बदलाव ही मानव-जीवन को बदल पाएगा. ****हमलोग अच्छी तरह जानते है कि हमलोगों का सबसे बड़ा दुश्मन हमलोगों का अपना लालच (greed), अहंम (egoism)अहंमवादी (egoistic) ही है जो हमलोगो के मन-मस्तिष्क में हमेशा गूंजता रहता है जो रचनात्मकता के रास्ते मे एक बड़ा रोड़ा बन खड़ा रहता है. इससे हमलोग घुटन (suffocated) अनुभव करते रहते है. याद रहे विज्ञान के प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि ध्वनि' रचनात्मकता का एक आवश्यक तत्त्व है. अत: मनमोहक ध्वनि के विश्लेषण (anatomize) से प्राप्त एक विशिष्ट क्वान्टम स्टाइल (स्ट्राइप्स समूंह) का जन्म होता है जो अदृष्य मस्तिष्क को नियंत्रित करने के काम आ सकता है. पाठक वृन्द स्वयं ब्लॉग missionquantum.blogspot.com पर जाकर प्राप्त अनुभव हमारे साथ शेयर करें. प्रस्तुत क्वान्टम-स्टाइल (डिजाइन) की उपयोगिता वस्त्र डिविजन CIIE-IIM-A (अहमदाबाद) द्वार अनुमोदित है. *****इस सन्दर्भ में mission quantum mind के अनुसार मानव-मस्तिष्क का क्रिया-कलाप भी घड़ी मे लगे पेन्डूलम (दोलक) के अनुरूप है जो दो विपरित ध्रुवों के मध्य सरल आवर्त में अनवरत गतिमान (कम्पन) रहता है. यही ऊर्जा का भी वास्तविक एवं आन्तरिक गुण है. वैज्ञानिक स्वयं उसी ऊर्जा का अभिन्न अंग है जिसकी आन्त-रिक विचार-वृत्तियॉ दो विपरित ध्रुवों के मध्य विचरित करती रहती हैं. मनुष्य अपनी आन्तरिक विचार वृत्तियों के वनस्पति बाहरी-विचार-वृत्तियों को ज्यादा महत्त्व दिया करता हैं, (He distinguishes between inward and outward) यह वैज्ञानिक युग का एक दोष है ? इन दो विचार-वृत्तियों (inward & outward) के मध्य वैज्ञानिक नियमों के अनुरूप पारस्परिक सरल सम्बन्ध बनते रहना ही हर हालत में मनुष्यों के लिए लाभ दायक है जो क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा बनता रहता है. **भारतीय योग दर्शन भी कुछ ऐसा ही कहता है जिसके अनुसार- चेतना-पटल पर स्वयं की प्रकृति के कारण विभिन्न आवृत्ति, आयाम की उठती बाहरी विचार-तरंगें लगातार स्क्रीन पर चहल-कदमी करती रहती हैं. इन विचार-तरंगों को उनके अपने अनुपातिक कम्पन-विस्तार में निरोध (कैद) कर देने से वे अपनों के निजस्वरूप की आन्तरिक-तरंगों के साथ घुल-मिल जाती है. दोनों तरंगें मिलकर जब सरल आवर्त गति में कम्पन करने लगे व जिनसे मन को अपेच्छाकृत शान्ति की अनुभूति होने लगे तो उसे हम लोग योग कहते हैं, पतंजल के समाधि-पाद के दूसरे सूत्र मे भी ऐसा ही कुछ कहा गया है जैसे- योगाश्चित्तवृत्तिनिरोध: 1-(2) इस तरह बाहरी और आन्तरिक तरगो के मध्य अन्तरद्वन्द होने से संसार का कल्याण सम्भव नहीं दिखता वल्कि विध्वंश को आमन्त्रण देने जैसा है. पश्चिम इसका जीता-जागता उदाहरण है जबकि उन लोगों के प्रयास से ही इस अन्तर को भलिभॉति विज्ञान के माध्यम से समझा जा सका है. इसे समझने के लिए पहले प्रकृति की वास्तविकता को समझना होगा: पेन्डूलम के निचले छोर में लगे पिन्ड की पोटेन्सियल इनर्जी का उसके काइनेटिक इनर्जी मे लगातार ट्रांसफर होते रहना ही समरसता (harmony) के लिए आवश्यक है. यदि उसके पोटेंशियल इनर्जी -जैसे आवृत्ति या आयाम (कम्पन-विस्तार) में कोई बड़ा परिर्वतन कर दिया जाय तो पिन्ड का दोलन-पाथ अनिश्चित हो जाता है. इसे Lissajous figures द्वारा समझा जा सकता है. ठीक यही घटना मस्तिष्क के साथ भी घटती रहती है. मनुष्य का पोटेन्सियल इनर्जी उसके ज्ञान (knowledge level) अवेयरनेस (consciousness) तथा माइन्ड पैटर्न (संस्कार) का प्रतिफल होता है. यदि इसके पोटेन्सियल इनर्जी मे कोइ बदलाव (जैसे निजी स्वार्थ के साथ अहंमभाव जूड़ जाय) हो जाय, तो मस्तिष्क का दोलन-पाथ भी अनिश्चित हो जायेगा, फलस्वरूप सेन्ट्रल-नर्वस-सिस्टम द्वारा प्रायोजित परसेेप्टिव अपरेट्स घटना को मस्तिष्क वास्तविक रूप में ग्रहण करने मे समर्थ नही हो पाता, जिसके कारण वह सोचने-समझने व तत्कालिक निर्णय लेने में वह असमर्थ हो जाता है. मस्तिष्क के दोलन-पाथ मे एकरूपता लाने के लिए युक्तीपूर्ण पोटेन्सियल इनर्जी (स्वाभिमान) उसके काइनेटिक इनर्जी मे पूर्णरूपेण लगातार ट्रान्सफर होते रहने से मस्तिष्क के दोलन-पाथ मे एकरूपता बनी रहती है जिससे तत्कालिक निर्णय लेने मे व्यत्कि समर्थ हो जाता है. Quantum-Style (Design) सघन विचार के बाद ही प्रस्तुत किया जा रहा है. प्रकृति में किसी पिन्ड की समस्त ऊर्जा-पोटेंसियल और काइनेटिक इनर्जी का योग होता है. इसी तरह मनुष्य की भी-समस्त ऊर्जा पोटेंसियल और काइनेटिक इनर्जी का योग होगा. संगीत सम्पादन के समय असंख्य सरल आवर्त गति के दोलन जन्म लेते रहते है जो आपस में अध्यारोपण के फलस्वरूप एकाकी सरल आर्वत गतिमान मे परिवर्तित होकर समीच्छक (observer) के कानों तक पहुंचते रहते है जिनसे उसके अन्दर संगीत ध्वनि के श्रवण से प्रसन्नता का एहसास होता रहता है. प्रस्तुत स्ट्राइप्स समुंह (क्वान्टम स्टाइल) साउन्ड पैर्टन का अभासी चित्रण है जो ऊर्जा का संकुचन और उसका प्रसार एक के बाद एक का पुनरावृत्ति को दर्शाता है. संकुचन के बाद उसके प्रसार से निकली हुइ पोटेंसियल इनर्जी काइनेटिक इनर्जी मे लगातार ट्रांसफर होते रहने के कारण लेयर पैटर्न आगे बढता रहता है जो observer के कानों तक पहुंचता रहता है. यही लेयर हमलोगों के कर्ण-पटल पर बार-बार अपने शक्ती के अनुरूप टक्कर देते रहते है जिन्हे लिम्बिक-सिस्टम के न्युरॉन्स सोख (absorb) कर न्यूरल-पाथ के माध्यम से सिग्नल को मस्तिष्क तक पहुंचाते रहते हैं जिन्हे मस्तिष्क ट्रांसलेट करता रहता है प्रस्तुत स्ट्राइप्स समुंह (क्वान्टम-स्टाइल डिजाइन) बार-कोड के अनुरूप है, इनमें भी बार-कोड अनुरूप भारतीय क्लासिकल संगीत की मनमोहक उर्जा अंत:स्थापित (embeded) है. बाहरी विचार तरंगों को आन्तरिक तरंगे अपने संगत मे आंख की मध्यस्थता से खींच लाती है ?. इस तथ्य को सभी स्वयं मिलते-जूलते डिजाइन पर अजमा सकते हैं. अत: दो विचारधाराओं (पश्चिम और पूरब) के मध्य क्रिया-प्रतिक्रिया मे सन्तुलन एवं समन्यवय आंख के माध्यम से ही मानसिक विकृतियों पर विजय प्राप्त करने की कोशिस की जा सकती है. आवश्यक सूचना: जो कोई इसे टेस्ट करना चाहता है, बाजार से मिलते-जूलते स्ट्राइप्ड डिजाइन के कपड़े पर सत्यता की जांचकर सकता है. याद रखें बाजार में मिलने वाले कलर्ड स्ट्राइप्ड डिजाइन समानुपातिक नही होते हैं, फिर भी, कुछ असर अवश्य दिखेगा, Readers, too can promote it by writing their views about this mind friendly Quantum-Style (Design) recognised pragmatically by Vastra Division of CIIE-IIM-A based on Indian Classi -cal Music. प्राप्त अनुभव e-mail पर अवश्य शेयर करें. mission.quantum@gmail.com क्वान्टम लाइफ स्टाइल फॉर योग एण्ड स्ट्रेस मैनेजमेन्ट.